क्या आपने किसी दुकान पर किसी बच्चे को मजदूरी करते देखा है? किसी चाय की दुकान या चलताऊ सी होटल मे? वह बच्चा बरसों बरस वहीं काम करता है। बच्चे से बूढ़ा होते हुए वह छुटकू से छोटू फिर छोटू से छोटू भैया बन जाता है, फिर बुढ़ापे मे छोटू काका बनकर मर जाता है।
इस पूरे सफर मे उसकी हालत वही की वही रहती है। वह जिंदगी भर एक गंदी सी फटी हुई बानियान और काली सी चड्डी या घुटनों तक लुंगी पहने चाय पिलाता है, सफाई करता है और गालियां खाता है। यह सब करते हुए वह भविष्य के तीन चार छोटू या छुटकी और पैदा कर देता है जो भविष्य मे गालियां खाने या अस्मत लुटाने की तैयारी कर रहे होते हैं।
वह छोटू जिस दुकान मे काम करता है उसके मालिक को देखिए, वह उस छोटू की मेहनत से न सिर्फ पैसे कमाता है बल्कि एक से दो या चार दुकाने खोल लेता है। इस मालिक के बच्चे भविष्य मे अच्छे स्कूलों मे पढ़ते हैं, उन्हें अच्छे कपड़े भोजन और इलाज मिलता है। इधर हमारा छोटू और उसके बच्चे उस होटल के आसपास दूसरी दुकानों मे झाड़ू लगाते और भीख मांगते हैं।
एक मजदूर दूसरों की दुकान मे दिनभर काम करते हुए भी कुछ नहीं कमा पाता। क्योंकि वह अपना नहीं किसी और का भविष्य बनाने के लिए काम करता है।
भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग भी इसी तरह दूसरों की राजनीतिक या धार्मिक दुकानों मे झंडे, डंडे, कावड़, थाली, दीपक इत्यादि लेकर कितना भी शोर मचा लें, उन्हे कुछ नहीं मिलने वाला। जब तक वे अपने धर्म और अपनी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत के लिए काम करना शुरू नहीं करते तब तक वे लालाजी की दुकान मे छोटू भैया से छोटू काका बनकर जीते और मरते रहेंगे।
अपनी धार्मिक सांस्कृतिक विरासत और अपने ऐतिहासिक पूर्वजों पर आधारित धर्म और संस्कृति को खड़ा कीजिए, अपनी दुकान खुद खोलिए भले ही वह छोटी सी हो, संघर्ष कीजिए और धीरे धीरे आपको सफलता मिलने लगेगी। जिन समुदायों के नेताओं ने अपने लोगों को भीड़ की तरह इधर उधर “सप्लाई” करने के धंधे को ही राजनीति समझ लिया है वे समुदाय पहले से ज्यादा कमजोर होते जा रहे हैं। इन समुदायों के नेता भले ही विधानसभाओं या लोकसभाओं मे पहुँच गए हैं लेकिन ये नेता गद्दार हैं।
ये नेता असल मे अपनी संस्कृति और अपने धर्म का नाश करते हुए अपनी कौम की अस्मिता का सौदा करते हैं, इसीलिए इन्हे पुरस्कार मे बंगला गाड़ी और जमाने भर की सुविधाएं मिलती हैं।
आज सड़कों पर जो लोग मारे जा रहे हैं उनकी कास्ट प्रोफ़ाइल उठाकर देखिए, वे सब 95 प्रतिशत से अधिक ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग हैं। उनके कितने विधायक और सांसद हैं? पता कीजिए वे इनके लिए क्या कर रहे हैं? वे असल मे "अपने लोगों के द्वारा" जरूर चुने गए हैं लेकिन "अपने लोगों के लिए" नहीं चुने गए हैं।
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