प्रणाम!
रोज की तरह मैं सुबह घूमने निकला ।अचानक एक विचित्र जंतु को देखा। कोतुहल बस में उसके पास जाने लगा। उस जंतु ने मुझे सावधान कर दूर रहकर बात करने को कहा । उसकी आवाज मुझे गंभीर और भयावय लगी । मैंने उसका आदेश स्वीकार किया , दूर खड़ा रहकर मैंने उसका परिचय लेना ही उचित समझा । मेरे शब्दों में उसके प्रति निवेदन था ।अपनी विवसता भरी आवाज से उसका परिचय पूछा?
'मेरा नाम कोरोना है।' बस उसके इतने कहने पर मैं अपने मार्ग में तेज गति से घर आने के लिए बढ़ने लगा। तेज बढ़ता देख उसने मुझसे पूरा परिचय लेने को कहा? पर साथ ही उसने मुझे पुनः सतर्क किया। मुझसे दूर रहकर ही बात करो वरना सही वापस नहीं जा पाओगे। मैंने तुम्हें अपना नाम कोरोना बताया, यह नाम तुम्हारे जैसे मानव ने ही मुझे दिया है। कोरोना तुम तो अति सूक्ष्म हो हम जैसे मानव को तुम्हें सूक्ष्मदर्शी से देखना पड़ता है तब कहीं तुम मुश्किल से दिखाई देते हो।
हां मैं अति सूक्ष्म हूं। अभी-अभी तो विस्तार कर रहा हूं ,हे मानव!मैंने मेरे इतने से विस्तार में तुम्हारी अच्छी बनी बनाई दुनिया को लाक डाउन कर दिया ।तुमने पूछा नहीं यह सब मैंने क्यों किया? मैंने नम्रता भरी आवाज से कहा ,बताओ ना भाई!
हे मानव तुम बहुत दिनों से ढिंढोरा पीठ रहे थे हम बहुत विकसित हो गए हैं। तुमने एक दूसरे को नीचे दिखाने के लिए एटम बम बड़े-बड़े आधुनिक अणु परमाणु बम बना रखा है, एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए धमकी देते फिरते हो कि कुछ पलों में ही दुनिया का संहार कर डालेंगे। सुना है तुमने ही मेरे जैसे सूक्ष्म विषाक्त जीवो को बनाकर एक दूसरे को मारने के लिए हथियार का काम करते हो। अपने को ज्यादा ही विकसित करने के लिए बड़े-बड़े कल कारखाने से चौबीसों घंटे धुआं उगलाते हो ,सारा वायुमंडल प्रदूषित कर रखे हो, अपने भोजन में हमेशा प्रकृति के बनाए प्राणियों का उपयोग करते हो ,अच्छा भला बना बनाया पर्यावरण दूषित कर रहे हो, बड़ी-बड़ी नदियां तुम्हारे द्वारा की जाने वाली गंदगियों से नष्ट हो रही है ,बड़े-बड़े पहाड़ों को नष्ट कर उनकी गरिमा गिरा रहे हो, और वेहिसाब प्रकृति का दोहन निरंतर किए जा रहे हो। अब मेरे पास समय कम है। बस मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि अपने इस प्रकृति विरोधी विकास को बंद करो! रासायनिक हथियारों की होड़ खत्म करो ! प्रकृति के जीवो को भोजन ना बनाकर शुद्ध शाकाहार करो! अपनी जनसंख्या वृद्धि पर रोग लगाओ! प्रकृति का संतुलन बनाओ वरना अगर यह काम स्वयं प्रकृति ने करना शुरू किया तो जब प्रकृति के मुझ जैसे अकेले, अदृश्य और अतिसूक्ष्म जीवरूपी हथियार ने तुम्हारी सुविकसित सभ्यता को तहस-नहस कर दिया है तो कल्पना करो की जब प्रकृति मुझसे भी विकराल अपने अन्य हथियार का प्रयोग करेगी तो क्या आप उसका सामना कर सकोगे ?
हे मनुष्य!!! एक बार पुनः विचार करके देखो ।
translate english
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें